ओ मेरे मानस पुत्र विचारों !
ओ मेरी देहांश क्रियाओं !!
जब तक मेरा ज्वार न उतरे ,जब तक ये तूफ़ान न गुजरे
धीर धरो! धीर धरो!!
ओ मेरी मंजिल,ओ मेरी राहों !
ओ मेरे तलवे ,ओ मेरे पांवों !!
जब तक छाले सूख न जाएँ,झूठे बंधन टूट न जाएँ
धीर धरो! धीर धरो!!
वर्षों से मै जाग रहा हूँ,
सपने-सपने भाग रहा हूँ.
जब तक मैं एक झपकी ले लूं ,अपने को दो थपकी दे लूं
धीर धरो ! धीर धरो !!
मूरखता में माँ बन बैठा
तुमको सत्वांसे जन बैठा
अब जब तक दो मास न गुजरे,जब तक उर में दूध न उतरे
धीर धरो ! धीर धरो !!
ओ मेरे मानस-पुत्र विचारों
उच्च विचारों , छुद्र विचारों
ओ मेरी देहांश- क्रियाओं
कृष-कई,सतवांसक्रियाओं
जब तक पूरी देह न छूटे , आश्रयता की आस न टूटे
धीर धरो ! धीर धरो!!
......पवन श्रीवास्तव